Friday 12 June 2015

सूर्यं   सुन्दरलोकनाथं   अमृतं   वेदान्तसारम्  
शिवं   ज्ञानब्रह्ममयं  सुरेशं  अमलं लोकैकचित्रस्वयम्
इन्द्रादित्यनराधिपसुरगुरुं   त्रैलोकचूडामणिम् 
ब्रह्मविष्णुशिवस्वरूपहृदयं   वन्दे   सदा   भास्करम् 




ततो   युद्ध   परिश्रान्तं   समरे   चिन्तया   स्थितम्  
रावणं   चाग्रतो   दृष्ट्वा   युद्धाय   समुपस्थितम् 

दैवतैश्च   समागम्य   द्रष्टुमभ्यागतो   रणम्  
उपागम्याब्रवीद्रामं   अगस्त्यो   भगवान्   ऋषि:

रामराम   महाबाहो   शृणु   गुह्यं   सनातनम् 
येन   सर्वानरीन्   वत्स   समरे   विजयिष्यसि 

आदित्यहृदयं   पुण्यं   सर्वशत्रुविनाशनम् 
जयावहं   जपेन्नित्यं   अक्षय्यं   परमं   शिवम् 

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यम्   सर्वपापप्रणाशनम् 
चिन्ताशोकप्रशमनं   आयुर्वर्धनमुत्तमम् 

रश्मिमन्तं   समुद्यन्तं   देवासुरनमस्कृतं 
पूजयस्व   विवस्वन्तम्   भास्करं   भुवनेश्वरम् 

सर्वदेवात्मको   ह्येष   तेजस्वी   रश्मिभावनः 
एष   देवासुरागणान्   लोकान्   पाति   गभस्तिभिः  

एष   ब्रह्मा   च   विष्णुश्च   शिवः   स्कन्दः   प्रजापतिः 
महेन्द्रो   धनदः   कालो   यमः   सोमो   ह्यपाम्पतिः 

पितरो   वसवः   साध्या   ह्यश्विनौ   मरुतो   मनुः 
वायुर्वह्नि   प्रजाप्राण   ऋतुकर्ता   प्रभाकरः 

आदित्यः  सविता   सूर्यः   खगः   पूषा   गभस्तिमान् 
सुवर्णसदृशो   भानुः   हिरण्यरेता   दिवाकरः 

हरिदश्वः   सहस्रार्चिर्सप्तसप्तिः   मरीचिमान् 
तिमिरोन्मथनः   शंभुः   त्वष्ठा   मार्ताण्ड   अंशुमान् 

हिरण्यगर्भः   शिशिरः   तपनो   भास्करो   रविः 
अग्निगर्भोSदितेः   पुत्रः   शङ्खः   शिशिरनाशनः 

व्योमनाथः   तमोभेदी   ऋग्यजुः   सामपारगः  
घनवृष्ठिरपां   मित्रो   विन्ध्यवीथी   प्लवङ्गमः

आतपी   मण्डली   मृत्युः   पिङ्गलः   सर्वतापनः  
कविर्विश्वो   महातेजा   रक्तः   सर्वभवोद्भवः 

नक्षत्रग्रहताराणां   अधिपो   विश्वभावनः 
तेजसामपि   तेजस्वी   द्वादशात्मन्   नमोSस्तुते

नमः   पूर्वायगिरये   पश्चिमायाद्रये   नमः   
ज्योतिर्गणानांपतये   दिनाधिपतये   नमः 

जयाय   जयभद्राय   हर्यश्वाय   नमो   नमः    
नमो   नमः   सहस्रांशो   आदित्याय   नमो   नमः

नम   उग्राय   वीराय   सारङ्गाय   नमो   नमः    
नमः   पद्मप्रबोधाय   मार्ताण्डाय   नमो   नमः  

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय   सूर्यायादित्यवर्चसे     
भास्वते   सर्वभक्षाय   रौद्राय   वपुषे   नमः 

तमोघ्नाय   हिमघ्नाय   शत्रुघ्नायामितात्मने     
कृतघ्नघ्नाय   देवाय   ज्योतिषांपतये   नमः 

तप्तचामीकराभाय   वह्नये   विश्वकर्मणे     
नमः   तमोSभिनिघ्नाय   रवये   लोकसाक्षिणे 

नाशयत्येष   वै   भूतं   तदेव   सृजति   प्रभुः      
पायत्येष   तपत्येष   वर्षत्येष   गभस्तिभिः

एष   सुप्तेषु   जागर्ति   भूतेषु   परिनिष्ठितः       
एष   एवाग्निहोत्रं   च   फलं   चैवाग्निहोत्रिणाम् 

वेदाश्च   क्रतवश्चैव   क्रतूनां   फलमेव   च       
यानि   कृत्यानि   लोकेषु   सर्व   एष   रविः   प्रभुः 

एनमापत्सु   कृच्छ्रेषु   कान्तारेषु   भयेषु   च       
कीर्तयन   पुरुषः   कश्चिन्नावसीदति   राघव 

पूजयस्वैनमेकाग्रो   देवदेवं   जगत्पतिम्       
एतत्   त्रिगुणितं   जप्त्वा   युद्धेषु   विजयिष्यसि

अस्मिन्   क्षणे   महाबाहो   रावणं   त्वं  वधिष्यसि   
एवमुक्त्वा   तदागस्त्यो   जगाम   च   यथागतम् 

एतच्छ्रुत्वा   महातेजा   नष्टशोकोSभवत्तदा        
धारयामास   सुप्रीतो   राघवः   प्रयतात्मवान् 

आदित्यं   प्रेक्ष्य   जप्त्वा   तु   परम्   हर्षमवाप्तवान्   
त्रिराचम्य   शुचिर्भूत्वा   धनुरादाय   वीर्यवान् 

रावणं   प्रेक्ष्य   हृष्टात्मा   युद्धाय   समुपागमत्         
सर्व   यत्नेन   महता   वधे   तस्य   धृतोSभवत् 

अथ   रविरवदन्निरीक्ष्य   रामम् 
मुदितमनाः   परमं   प्रहृष्यमाणः 
निशिचरपति   संक्षयं   विदित्वा 
सुरगणमध्यगतो   वचस्त्वरेति